आसक्ति से मुक्ति ही सुख का मार्ग – याज्ञिक जी महाराज
सहारनपुर – 25 मई – श्री मंगलेश्वर महादेव मंदिर, मंगल नगर के प्रांगण में चल रहे सप्ताह भर के श्रीमद् भागवत कथा ज्ञानयज्ञ के दूसरे दिन विषय को आगे बढ़ाते हुए कथा व्यास पं. जयप्रकाश याज्ञिक ने बताया कि समस्त दुःखों, क्रोध और अशान्ति का मूल हमारे अन्दर मौजूद आसक्ति की भावना है। जीवन जीने का सही तरीका कमल दल से सीखना चाहिये जो पानी और कीचड़ में रह कर भी निर्लेप रहता है। हम सब अपने अपने कर्तव्यों को भगवान की भक्ति समझ कर करते रहें और बदले में कुछ पाने की चाह न रखें तो न तो हमें कोई कष्ट की अनुभूति होगी और न ही राग द्वेष की भावना हमें परेशान कर सकेगी। शाश्वत सुख और परमानन्द प्राप्त करने का मार्ग राग से मुक्ति ही है।
याज्ञिक जी ने बताया कि वैराग्य का अर्थ सांसारिक उपकरणों से घृणा कतई नहीं होता। घृणा का भाव भी राग और आसक्ति का ही दूसरा रूप है। हम अपने आसक्त मन को समझाने के लिये सांसारिक प्रलोभनों से घृणा प्रकट करने लगते हैं! ’ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया” वाली जीवन शैली सबसे उपयुक्त है जिसमें हम ’चदरिया’ यानि सांसारिक सुख – वैभव का उपयोग तो करते हैं पर उनमें फंसते नहीं हैं, उनमें हमारी आसक्ति नहीं होती। पूरा जीवन जीने के बावजूद हमारी ’चदरिया’ मैली नहीं होती!
कथाव्यास पंडित जी ने आगे बताया कि भगवान की भक्ति करनी है तो ’नर सेवा ही नारायण सेवा’ का मंत्र गांठ बांध लेना होगा। अपने परिवार के सदस्यों की सेवा से बढ़ते बढ़ते हमें समाज के ऐसे लोगों की सेवा का ध्येय अपनाना होगा जो तन से, मन से और धन से असहाय हैं। श्री राम कृष्ण सेवा संस्थान इसी मूल मंत्र को लेकर एक दशक से भी अधिक से कार्य में लगा हुआ है परन्तु ऐसे लोग असंख्य हैं जिनको सहायता की आवश्यकता है, जबकि सहायता करने वाले हाथ सीमित संख्या में हैं। यदि आप जीवन का सच्चा सुख पाना चाहते हैं तो किसी अनजान व्यक्ति की चुपके से कुछ सहायता करिये ताकि उसे पता भी न चले कि किसने उसने सहायता की। उस व्यक्ति की प्रसन्नता को अनुभव करके आपके अपने हृदय में भी आनन्द का सागर हिलोरे लेने लगेगा।
मंगल नगर महिला मित्र मंडल की सदस्य – श्रीमती मंजू अग्रवाल, श्रीमती साधना, श्रीमती शारदा, श्रीमती ममता, श्रीमती रश्मि शर्मा, श्रीमती प्रमिला गुप्ता, श्रीमती आराधना चौहान, श्रीमती रागिनी शर्मा, डा. नूतन उपाध्याय के अतिरिक्त श्री संजय त्यागी, डा. अंकुर उपाध्याय व डा. एस.के. उपाध्याय, डा. एस. के. गुप्ता आदि की उपस्थिति विशेष रूप से उल्लेखनीय रही। इस अवसर पर प्रसिद्ध रामायणी महन्त कौशलेन्द्र जी स्वामी ने भी उपस्थित श्रद्धालुओं को आशीष दिया।
The materialistic assets we earned in this world are not ends these are the means.we should not attach with any of such property. We would use them like custodian.not like the Masters as these are not our own rather these are for us for the time being.
yagik Ji had explained the theory of detachment in simple words.
Jai shri Krishna
Satya prakash sharma