जगत मिथ्या तो है पर….
यद्यपि ये सही है कि जगत मिथ्या है, माया है पर यह ऐसे ही है जैसे नाटक वास्तविकता नहीं होता, एक छद्म जीवनहोता है जो कलाकार को मंच पर जीना होता है| कलाकार जानते हैं कि वह मंच पर जो कुछ जीवन जी रहे हैं, वह वास्तविक जीवन नहीं है तथापि उनको इस काल्पनिक जीवन को पूरी इमानदारी और तल्लीनता के साथ निभाना है औरऐसे निभाना है कि दर्शक उसे सच मान बैठें, वाह-वाह कर उठें | पर पर्दा गिरते ही वह अपने वास्तविक जीवन में लौट आते हैं | मंच पर नायक और खलनायक एकदूसरे से लड़ते झगड़ते, एक दूसरे की ह्त्या के लिए उतारू दिखाई देते हैं पर मंच के पीछे वे एक दूसरे से गले मिलते हैं, साथ-साथ खाते पीते, उठते बैठते हैं, आपस में एक दूसरे के बहुत अच्छे मित्र होते हैं | यही अदालत में भी देखा जा सकता है जहां विरोधी पक्षों के वकील आपस में एक दूसरे के धुर विरोधी नज़र आते हैं पर यह सिर्फ उनका व्यावसायिक धर्म है|
रंगमंच पर अभिनय करना मिथ्या जीवन जीना है पर सफल कलाकार उसी को माना जाता है जो इस मिथ्या जीवन को पूरी तल्लीनता के साथ जीता है पर इस तथ्य को कभी नज़रअंदाज़ नहीं करता कि यहजीवन उसका वास्तविक जीवन नहीं है|
हमारे मनीषियों का मत है कि जैसे सपना देखते हुए हम यह नहीं जानते कि हम सपना देख रहे हैं और स्वप्न को ही वास्तविकता मान बैठते हैं, आँख खुलने के बाद जाकर यह पता चलता है कि “अरे, ये तो सपना था !” इसी प्रकार हम इस धरती पर जो जीवन जी रहे रहे हैं, वह भी रंगमंच की भूमिका के निर्वाह जैसा ही है| धरती पर जीवन पूरा होता है, तो मानों रंगमंच का पर्दा गिरता है| परदे के पीछे का जीवन ही वास्तविक जीवनहै | यदि कोई कलाकार अभिनय करते करते यह वास्तव में ही भूल जाए कि वह अभिनय कर रहा है तो वह मानों माया के बंधन में फंस जाता है | इसे स्मृतिलोप कहते हैं| वास्तव में हम कौन हैं, क्या हैं, कहाँ से आये हैं, क्यों आये हैं, यह जानने का प्रयास करना ही वास्तविक ज्ञान प्राप्त करना है| अपने वास्तविक रूप को पहचान लेने के बाद हमें यह भी ज्ञान हो जाता है कि इस जागतिक रंगमंच पर हम सब अभिनय कर रहे हैं और फिर इस रंगमंच का मज़ा दो गुना चौगुना हो जाता है| हम अपने अभिनय के प्रति सजग हो जाते हैं, उसमे और कुशलता और जीवन्तता लाने का प्रयास करते हैं| हम राग-द्वेष से मुक्त हो जाते हैं, सुख – दुःख से निर्लिप्तता हमारे लिए नितांत सहज हो जाती है| “सुखदुखे समे कृत्वा, लाभालाभौ जयाजयौ …. “ यहस्थिति तभी आती है जब हमें पता हो कि हमारा वास्तविक और रंगमंचीय जीवन दोनों बिलकुल अलग हैं |
– सुशान्त सिंहल
राइस मिल कम्पाउंड, माधव नगर,
सहारनपुर
singhal.sushant@gmail.com