बिना परिश्रम की कमाई हमारी हानि ही करती है – याज्ञिक जी
सहारनपुर – 28 मई – परिश्रम किये बिना कहीं से संपत्ति मिल जाने पर वह संपत्ति हमारी बुद्धि को भ्रष्ट करती है, हमें अभिमानी बना देती है। अधिक संपत्ति हो जाये तो व्यक्ति पथभ्रष्ट होकर अपनी बरबादी की राह पर बढ़ने लगता है, मदिरापान, जुआखोरी, परस्त्री संग दोष आदि व्यसनों में उलझ जाता है। इसलिये प्रारब्धवश जो परिश्रम के बाद धन मिले, वह ’प्रभु कृपा है’ – मान कर उसका सदुपयोग करें। जीवन में धर्म (अर्थात् अपने कर्तव्यों का पालन) और मर्यादा का पालन करते हुए प्रभु चरणों में मन व बुद्धि लगये रखेंगे तो हमारे मन में मलिनता (अपवित्रता) नहीं आयेगा और बुद्धि जड़ नहीं बनेगी।
याज्ञिक जी ने कथा को आगे बढाते हुए आज बताया कि अभिमानी व्यक्ति ही कंस है, जो अकारण हिंसा करे, अत्याचार पापाचार में लिप्त है वे ही कंस हैं। कंस ने माता-पिता की संपत्ति का दुरुपयोग किया, प्रजा को सताया, माता-पिता, बहन – बहनोई को रुलाया, बाल हत्या, गौ हत्या, ऋषि मुनियों का अपमान किया, आसुरी प्रवृत्ति को पूरी तरह से अपनाया, भारतीय वैदिक संस्कृति मिटाने का निन्दनीय और अनुचित कार्य किया तो प्रभु ने उसके पापों की सज़ा देकर अनेक आतताइयों का नाश किया।
याज्ञिक जी ने समझाया कि भगवान किसी को नहीं मारते, जीव अपने ही पापों के बोझ तले मरता है। प्रभु तो दयालु और कृपालु हैं, वे तो पापियों का भी उद्धार करने वाले हैं। राम और कृष्ण और पीर पैगम्बरों के इस देश में श्री राम और कृष्ण जैसे अवतारी राजाओं की आवश्यकता है तभी भारत और भारतीय सुरक्षित रहेंगे।