योग्य छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति वितरण
सहारनपुर – 29 मार्च : श्री रामकृष्ण सेवा संस्थान द्वारा गत वर्षों की भांति इस वर्ष भी स्टार पेपर सरस्वती विद्या मन्दिर इंटर कॉलिज, सहारनपुर के योग्य एवं प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं को वार्षिक छात्रवृत्ति दी गई। विद्यार्थियों को आशीर्वचन देते हुए भागवत भूषण पं. जय प्रकाश जी ’याज्ञिक’ जी ने कहा कि भारतीय ऋषि – मुनियों ने सौ वर्ष आयु की कामना करते हुए पूरे जीवन काल को पच्चीस – पच्चीस वर्ष के चार आश्रमों में विभाजित किया है जिनमें सबसे पहला विद्या आश्रम है। इस अवधि में बच्चे समाज को कुछ देने की स्थिति में नहीं होते, केवल लेते ही रहते हैं ! समाज का भी यही प्रयास होता है कि नयी पीढ़ी को सर्वश्रेष्ठ शिक्षा, संस्कार व उन्नति हेतु सर्वोत्तम सुविधाएं दी जा सकें ताकि नयी पीढ़ी बेहतर ज्ञान व विज्ञान के सहारे वर्तमान पीढ़ी से आगे निकल सके। अतः जितना भी ज्ञान, विज्ञान, कला-कौशल वर्तमान पीढ़ी के पास उपलब्ध है, वह नयी पीढ़ी को देने की चेष्टा की जाती है और नयी पीढ़ी से उम्मीद की जाती है कि वह इसको और आगे ले कर जाये।
दूसरा आश्रम ग्रहस्थ आश्रम है जिसमें नागरिकों से अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी क्षमता, रुचि व प्रतिभा के अनुकूल जीविका चुनें और समाज द्वारा दी जा रही सेवाओं का प्रवाह न सिर्फ बनाये रखें बल्कि उसमें और सुधार भी करें। इस प्रकार ग्रहस्थ आश्रम में आकर जब एक नागरिक कोई व्यापार, व्यवसाय या आजीविका चुनता है तो समाज उसको उसकी सेवाओं का पुरस्कार देता है। ग्रहस्थ आश्रम में प्रवेश करने वाले नागरिकों से यह भी अपेक्षा की जाती है कि वह एक योग्य जीवन साथी चुन कर विवाह बन्धन में बंधें और अपनी सन्तानों को भी योग्य नागरिक बनाएं !
तीसरा आश्रम वानप्रस्थ आश्रम कहलाता है जो आयु के उत्तरार्ध में शुरु होता है। इस आयु में आकर व्यक्ति की अपनी आवश्यकताएं सीमित होने लगती हैं किन्तु समाज के ऋण से उऋण होने की उसकी क्षमता सर्वोच्च स्तर पर होती है अतः वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश कर रहे नागरिकों से उम्मीद की जाती है कि वह समाज से जितना लें, उससे कहीं अधिक समाज को लौटाएं ! नागरिकों से अपेक्षा रहती है कि वह अपनी जिम्मेदारियां धीरे – धीरे अपने बच्चों को सौंप दें और स्वयं मार्गदर्शक की भूमिका में आ जायें।
जीवन का अन्तिम पड़ाव सन्यास आश्रम कहलाता है और इस आश्रम में प्रवेश कर रहे व्यक्तियों से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने घर – परिवार का मोह छोड़ कर समाज की सेवा में अपना पूरा समय देना आरंभ कर दें। अर्थात् कुछ भी लेने की भावना न रखते हुए सिर्फ देने का ही प्रयास करें।
विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए ’याज्ञिक’ जी ने कहा कि आपको जिस स्तर के स्कूल – कॉलेज व सुविधाएं आज उपलब्ध हैं, वह आपके माता-पिता को उपलब्ध नहीं हो पायी होंगी। आपका भी ये दायित्व बनता है कि आप इस विद्यार्थी जीवन के एक – एक क्षण का सदुपयोग करते हुए अधिकाधिक ज्ञान व कौशल का अर्जन करें ताकि आप से अगली पीढ़ी को और भी बेहतर सुविधाओं की राह प्रशस्त हो सके। उनके जीवन में यश व कीर्ति की कामना करते हुए पंडित जी ने छात्रवृत्तियां बांटी और अपना शुभ आशीष दिया। प्रस्तुत हैं, इस अवसर के कुछ चित्र ….
Really a good deed done by sews sansthan at Saharanpur by appreciating the talented Students.timly help and appreciation brings the best of the children but also shape the gud citizens in the nation.
My best wishes to all there who made it available by their pious efforts.
Satya prakash sharma