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मनस्येकं वचस्येकं कर्मस्येकं सज्जनाम् : पूज्य याज्ञिक जी महाराज

यदि हमें आनंद, संतोष और तृप्ति चाहिए तो उसका एक ही उपाय है और वह ये कि हमें अपने मन में, वचन में और कर्म में एकरूपता लानी होगी और यह तभी हो सकता है जब हम किसी ज्ञानी सत्पुरुष के चरणों में बैठें और उनके सिखाये अनुसार पूरी एकाग्रता से प्रभु का ध्यान करें ! याज्ञिक जी ने सु...
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द्वेष भाव अज्ञान का लक्षण है : महाराज याज्ञिक जी

पूज्य पंडित भागवत भूषण जय प्रकाश जी ‘याज्ञिक’ जी ने बताया कि द्वेष भाव हमारी अज्ञानता से उपजता है !  ज्ञानवान व्यक्ति कभी भी किसी से द्वेष भाव नहीं रखते हैं, उनसे भी नहीं जो उनसे द्वेष रखते हैं !  ज्ञानी व्यक्ति सभी से मित्रता का व्यवहार करतें हैं। वे करुणावान ह...
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