योग स्थूल से सूक्ष्म की ओर यात्रा है : योगाचार्य सुरेन्द्र
सहारनपुर – 7 अप्रैल, 2018 : योग साधना स्थूल से सूक्ष्म,प्रदर्शन से दर्शन,द्वंद्व से निर्द्वंद्विता और अनंत की ओर प्रयाण है। ‘योग’ साधक के जीवन की एक घटना है और यह उसी सुपात्र साधक के जीवन में घटती है जो गुरु मार्गदर्शन में योग के शास्त्रोक्त स्वरूप को समझ उसे जीवन आचरण में लाते हुए नियमित अभ्यास में गतिमान रहता है।इसलिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है योग के मूल स्वरूप को समझते हुए नियमित अभ्यास का सङ्कल्प लेते हुए नियमित अभ्यास करना। भले ही आप 10 मिनट से प्रारम्भ करें परन्तु करें नियमित। लोग प्रायः दीर्घ जीवन जीने की कामना तो करते हैं परंतु जीवन से प्रेम नहीं करते। समय रहते स्वयं के लिए समय निकाल योगाभ्यास में नियमित होने में ही समझदारी है।
आज सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए सूक्ष्म यौगिक क्रियाओं के अतिरिक्त अर्धकटिचक्रासन, उत्कटासन, वज्रासन, अर्धताडासन, भद्रासन, वक्रासन, एकपादपवन मुक्तासन, द्विपाद पवनमुक्तासन, भुजंगासन आदि योगासनों के अतिरिक्त प्राणा याम विषयक विशिष्ट चिकित्सीय एवं शास्त्रीय जानकारी के साथ प्राणायाम का अभ्यास भी कराया गया।संयम के योग प्रशिक्षकों डॉ दिनेश वर्मा,शिव कुमार,योगेन्द्र यादव,रोहित यादव ने शिविर में आये योग प्रशिक्षुओं को योगाभ्यास करवाने में सहयोग किया।
प्रबुद्ध चिंतक एवम् गायत्री साधक डॉ महेश शर्मा ने अपने ओजस्वी उद्बोधन में कहा कि परमसत्ता से साक्षात्कार के साधन रूप विभिन्न यौगिक आसनों एवम् क्रियाओं के माध्यम से स्वयं को स्वस्थ रखना सभी का कर्तव्य है।उन्होंने कहा कि प्राण ही जीवन है ।जीवन के स्वस्थ समृद्ध विस्तार के लिए यह आवश्यक है कि इस देह में स्थित सम्पूर्ण प्राण शक्ति को शोधित करते हुए उसका निरन्तर विकास एवम् उत्थान किया जाता रहे। तभी हम एक स्वस्थ शरीर,मन एवम् एक विवेकी व्यक्तित्व के स्वामी बन सकते हैं। उन्होंने श्री रामकृष्ण सेवा संस्थान के संचालक भागवत भूषण के सम्पूर्ण समाज के उत्थान एवम् भारतीय संस्कृति की अक्षुण्णता को बनाये रखने के लिए गत कई वर्षों से निरन्तर किये जा रहे पूर्ण निस्वार्थ सद्प्रयासों के लिए उनको साधुवाद दिया।
श्री रामकृष्ण सेवा संस्थान द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम के छटे सत्र में कथा व्यास भागवत भूषण पं. जय प्रकाश याज्ञिक जी महाराज ने श्री कृष्ण, राधा और गोपियों के तात्विक अर्थ को स्पष्ट करते हुए समझाया कि जो अपनी इन्द्रियों से श्रीकृष्ण रस का पान करें, आंखों से रूप माधुरी पियें, कानों से उनकी बांसुरी वेणु माधुरी को पियें, वही दिव्यात्मा गोपियां हैं। जो वेणुगीत सुन कर उपासक हो गयीं और प्रणय गीत से भगवत्कृपा की पात्रता प्राप्त की और स्वयं गीत गाकर परमात्मा श्री कृष्ण को प्राप्त किया। भगवान श्री कृष्ण ने पुनः मथुरा में आकर माता-पिता को बंधन मुक्त कराया और कंस जैसे दुराचारी, आततायी का वध कर अपने भक्तों का उद्धार किया और वैदिक सनातन संस्कृति को पुनः स्थापित किया। पुनः उद्धव को प्रेमाभक्ति प्राप्त करने के लिये ब्रज में भेजा। हमको गोपियों की भांति ऋषिवत जीवन जीना होगा। तभी हम सच्चे और अच्छे इन्सान होकर प्राणीमात्र के लिये सेवा धर्म निभा पायेंगे।
आज प्रातः ऋतिका शर्मा ने सपरिवार श्रीमद भागवत महापुराण की पूजा की और संपूर्ण प्राणिमात्र के कल्याण हेतु प्रभु से याचना की। इस अवसर पर अनिल शर्मा, गोकरण दत्त शर्मा, डा. महेश शर्मा, अनुज मित्तल, पारुल मित्तल, संजय त्यागी और संदीप शर्मा ने ठाकुर जी की आरती की और संस्थान का परिचय कराया। बी.एच.ई.एल. हरिद्वार से हरीश शर्मा विशेष रूप से उपस्थित रहे।