छल कपट से भरा हृदय लिए व्यक्ति मुझे नहीं सुहाते : प्रभु श्री राम
कोटि विप्र वध लागहिं जाहू। आऍ सरन तजऊं नहिं ताहू।।
सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं।। श्रीरामचरित मानस (सुंदरकांड) 5-44
हम गुरु संदेश सुनातें हैं-
भागवत भूषण पंडित जय प्रकाश जी याज्ञिक महाराज ने आज प्रभु श्रीराम और सुग्रीव का प्रसंग सुनाते हुए बताया कि प्रभु की शरण में वही व्यक्ति आ सकता है जो छल कपट से दूर हो ! जब लंकाधिपति रावण का भाई विभीषण युद्ध स्थल पर भगवान श्री राम की शरण में आया तो सुग्रीव ने संदेह प्रकट किया कि हो सकता है विभीषण राक्षसराज रावण का भेजा हुआ कोई गुप्तचर हो जो हमारी सेना का भेद लेने के लिए आया हो! इस पर प्रभु श्रीराम सुग्रीव को समझाते हुए कहते हैं कि अगर किसी व्यक्ति पर सैंकड़ों ब्राह्मणों की हत्या का भी आरोप हो पर वह मेरी शरण में आया हो तो मैं उसे त्याग नहीं सकता ! अगर कोई व्यक्ति हृदय से दुराचारी है तो उसे मेरा भजन कभी भी नहीं सुहाता है। और ऐसे में वह मेरे पास फटकने के भी हिम्मत नहीं कर सकता! इसलिए ही सुग्रीव, तुम चिंतित न हो ! विभीषण भले ही एक आततायी, दुराचारी, ब्राह्मण का वध करने वाले रावण का छोटा भाई है, पर उसका मेरी शरण में आना छल कपट नहीं है! विभीषण मूलतः संत प्रवृत्ति का व्यक्ति है! इस जन्म में वह राक्षस है पर उसके पूर्व जन्म के शुभ संस्कार प्रबल हैं!
अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक् ।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः ॥
याज्ञिक जी ने कहा कि जो तत्व ज्ञान प्रभु श्रीराम ने त्रेता युग में सुग्रीव को दिया, वही ज्ञान द्वापर युग में श्रीमत् भगवत् गीता में योगेश्वर श्रीकृष्ण भी अर्जुन को देते हुए दिखाई पड़ रहे हैं ! प्रभु कहते हैं – अगर कोई दुराचारी से दुराचारी भी अनन्य भक्त होकर मेरा भजन करता है, तो उसको साधु ही मानना चाहिये। कारण कि उसने निश्चय बहुत अच्छी तरह कर लिया है। यही दृढ़निश्चय और उसके पूर्वजन्मों के शुभ संस्कार उसको संतों की शरण में पहुँचा देतें हैं, संतों के मार्गदर्शन में वो यह मान लेता है ,,कि मैं भगवान का हूँ और भगवान मेरे हैं।ऐसी भगवन्निष्ठा ,और समर्पण भाव से उसकी अहंता में परिवर्तन हो जाता है। संतों से मिला भगवन्नाम ही उसके लिए महामंत्र हो जाता है। परिणामस्वरूप तभी तो डाकू रत्नाकर–वाल्मीकि हो गये हैं, पापीअजामिल ब्रह्म ज्ञानी (ब्रह्मर्षि) और सदन कसाई भी सत्संगी होकर भगवान के सच्चे भक्त हो गये। हो गये भव से पार लेकर नाम तेरा…. जीव परमात्मा का अंश होने से सदैव पवित्र है। केवल संसार के सम्बन्ध से वह पापात्मा बना था। संसार के संबंध छूटतें ही वह ज्यों का त्यों पवित्र हो गया। आईए!!! हम हमेशा हमारी पवित्रता बनाकर रखने का दृढ़ संकल्प लें ,और हर पल भगवन्नाम जप करतें हुए निरपेक्ष होकर अपने कर्तव्यों पालन करतें रहें। शुभ कामनाओं के साथ सादर प्रणाम🙏🙏
हरि ॐ… ऊँ नमो नारायणाय।।