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छल कपट से भरा हृदय लिए व्यक्ति मुझे नहीं सुहाते : प्रभु श्री राम

कोटि विप्र वध लागहिं जाहू। आऍ सरन तजऊं नहिं ताहू।। सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं।। श्रीरामचरित मानस (सुंदरकांड) 5-44 हम गुरु संदेश सुनातें हैं- भागवत भूषण पंडित जय प्रकाश जी याज्ञिक महाराज ने आज प्रभु श्रीराम और सुग्रीव का प्रसंग सुनाते हुए बताया कि प्रभु की शरण में वही व्यक्ति आ सकता है जो छल कपट से दूर हो !  जब लंकाधिपति रावण का भाई विभीषण युद्ध स्थल पर भगवान श्री राम की शरण में आया तो सुग्रीव ने संदेह प्रकट किया कि हो सकता है विभीषण राक्षसराज रावण का भेजा हुआ कोई गुप्तचर हो जो हमारी सेना का भेद लेने के लिए आया हो!  इस पर प्रभु श्रीराम सुग्रीव को समझाते हुए कहते हैं कि अगर किसी व्यक्ति पर सैंकड़ों ब्राह्मणों की हत्या का भी आरोप हो पर वह मेरी शरण में आया हो तो मैं उसे त्याग नहीं सकता !  अगर कोई व्यक्ति हृदय से दुराचारी है तो उसे मेरा भजन कभी भी नहीं सुहाता है...
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सदैव संतुष्ट और प्रसन्न कैसे रहें?

हरि ॐ… ऊँ नमो नारायणाय🙏🙏 श्री सद गुरुवे नम:!! हम गुरु संदेश सुनातें हैं- संतुष्ट सततं योगी, यतात्मा दृढ़निश्चय:! मय्यर्पितमनोबुद्धियोर्मद्भक्त: स मे प्रिय:!! 12-14 (भगवद्गीता ) भगवान कह रहे हैं- जो मेरा हो गया है जिसने अपने मन इन्द्रियों के साथ शरीर को अपने वश में कर लिया है और एकमात्र मुझपर ही भरोसा किया है ,जो दृढ़ संकल्पित है, सर्वस्व अर्पित करते हुए मन बुद्धि मुझमें ही लगाये हुए हैं वे सदैव संतुष्ट और प्रसन्न रहतें हैं! वे ही मेरे भक्त हैं और मेरे प्रिय हैं। हम सदैव प्रसन्न और संतुष्ट कैसे रहें? तो भगवान स्वयं मार्गदर्शन कर रहें हैं ,संकेत कर रहें हैं–मुझसे जुड़े रहोगे तो सतत (हरपल) संतुष्ट रहोगे। संसार से जुडो़गें तो सतत संतुष्ट (सन्तोष का अनुभव) नहीं रह पाओगे। जब हमारी जिन्दगी में जिस क्षण में परमात्मा ही सर्वस्व हो जायेगा ,तो हमकों जो भी प्राप्त है,  उसी को पर्याप्त...
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द्वेष भाव अज्ञान का लक्षण है : महाराज याज्ञिक जी

पूज्य पंडित भागवत भूषण जय प्रकाश जी ‘याज्ञिक’ जी ने बताया कि द्वेष भाव हमारी अज्ञानता से उपजता है !  ज्ञानवान व्यक्ति कभी भी किसी से द्वेष भाव नहीं रखते हैं, उनसे भी नहीं जो उनसे द्वेष रखते हैं !  ज्ञानी व्यक्ति सभी से मित्रता का व्यवहार करतें हैं। वे करुणावान होतें हैं। मोही और अहंकारी नहीं होतें हैं। क्षमा शील होतें हैं साथ साथ सभी के सुख दुःख में शामिल होकर शान्ति मय जीवन जीने की सत्प्रेरणा देतें हैं, सन्त महापुरुष शरण में आयें हुए शिष्यों को सन्तत्व प्रदान करके संसार की समस्त कामनाओं वासनाओं से मुक्त कर देतें हैं।जब हमारें अन्त:करण में और व्यवहार में विचार और वाणी में सुधार हो जातें हैं , तो हमकों स्वयं ही सन्त महापुरुष मिल जातें हैं।तो आईये दृढ़ता पूर्वक संकल्प करें, अपने जीवन की यही साधना हम भी करेंगे ,,तो निश्चित ही हमारा जीवन शान्तिपूर्ण आनन्दम...
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सत्य वचन

                  सत्य वचन संसार मे रहते हुए भी  संसार मे डूबना नही हैं । जैसे दीपक की बाती तेल मे डूब जाये तो प्रकाश लुप्त हो जाता हैं । अतः संसार सागर मे तैर कर संसार को प्रकाशित करना ही सफल जीवन हैं । सत्य प्रकाश धर्म “सत्य”
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