मनस्येकं वचस्येकं कर्मस्येकं सज्जनाम् : पूज्य याज्ञिक जी महाराज
यदि हमें आनंद, संतोष और तृप्ति चाहिए तो उसका एक ही उपाय है और वह ये कि हमें अपने मन में, वचन में और कर्म में एकरूपता लानी होगी और यह तभी हो सकता है जब हम किसी ज्ञानी सत्पुरुष के चरणों में बैठें और उनके सिखाये अनुसार पूरी एकाग्रता से प्रभु का ध्यान करें !
याज्ञिक जी ने सुनाई गज ग्राह की कथा
हरि ॐ… ऊँ नमो नारायणाय🙏🙏 हम गुरु संदेश सुनाते हैं…. पूज्य सद्गुरु देव सन्त श्री पथिक जी महाराज ने हमकों समझाया है… और वही ज्ञानोपदेश श्री शुकदेव जी महाराज ने महाराज परीक्षित जी को दिया है… सर्वारम्भपरित्यागी— जीवन में उतारे बिना-ज्ञान का मात्र बातों में होना, उतना महत्वपूर्ण नहीं होता है, व्यवहार में ज्ञान होना बहुत ही आवश्यक है–ऋते ज्ञानान्नमुक्ति।। सत की चर्चा चलती रहती, रमण असत् में होता है । तब पथिक कहाँ सत्संग हुआ, जब प्रीति असत् से हटा न सकें।। हमारा मन और बुद्धि सत (परमात्मा शाश्वत) से युक्त हो, यही कल्याणकारी सतसंग है
जीवन में अन्तिम सहारे के रूप में भगवान ही काम आयेगा, धीरे धीरे सभी साथी किनारें हो जायेंगे, सहारें के रूप में अन्तिम में भगवान- और भगवद्भक्ति – और प्रार्थना ही काम आयेगी। इसलिए सन्त महापुरुषों का संग ही हमारी मुक्ति का साधन बनेगा।
ग्राह ने जब गज को पकडा़ था, उसमें स्वयं दस हजार हाथियों🐘🐘 का बल था, अनेक हाथीं हथिनीं उसके साथ थे। परन्तु कोई साथी काम नहीं आ सका, सब सहारें टूट गयें उसका सारा पुरुषार्थ मिट्टी हो गया। गजेन्द्र ने अन्तिम में भगवान की प्रार्थना की—हे प्रभो! अब तेरा ही सहारा है। प्रभु प्रकट हुये और रक्षा की। आईये हम सभी भगवान की नित्य निरन्तर प्रार्थना करते रहने का अभ्यास करें।