सदैव संतुष्ट और प्रसन्न कैसे रहें?
हरि ॐ… ऊँ नमो नारायणाय🙏🙏 श्री सद गुरुवे नम:!!
हम गुरु संदेश सुनातें हैं-
संतुष्ट सततं योगी, यतात्मा दृढ़निश्चय:!
मय्यर्पितमनोबुद्धियोर्मद्भक्त: स मे प्रिय:!! 12-14 (भगवद्गीता )
भगवान कह रहे हैं- जो मेरा हो गया है जिसने अपने मन इन्द्रियों के साथ शरीर को अपने वश में कर लिया है और एकमात्र मुझपर ही भरोसा किया है ,जो दृढ़ संकल्पित है, सर्वस्व अर्पित करते हुए मन बुद्धि मुझमें ही लगाये हुए हैं वे सदैव संतुष्ट और प्रसन्न रहतें हैं! वे ही मेरे भक्त हैं और मेरे प्रिय हैं।
हम सदैव प्रसन्न और संतुष्ट कैसे रहें? तो भगवान स्वयं मार्गदर्शन कर रहें हैं ,संकेत कर रहें हैं–मुझसे जुड़े रहोगे तो सतत (हरपल) संतुष्ट रहोगे। संसार से जुडो़गें तो सतत संतुष्ट (सन्तोष का अनुभव) नहीं रह पाओगे। जब हमारी जिन्दगी में जिस क्षण में परमात्मा ही सर्वस्व हो जायेगा ,तो हमकों जो भी प्राप्त है, उसी को पर्याप्त मानकर सन्तोष (तृप्ति)का अनुभव करने लगेगें।
इसलिए सांसारिक पद- पदार्थ- प्रतिष्ठा- धन- मान- सम्मान में ,मन बुद्धि को मत अटकने देना, फंस जाओगे, इन उपलब्धियों को प्रभु प्रसाद मानों और धीरे धीरे इनमें से मन को हटाओ ,,मन को परमात्मा में लगाओ अपनी जीवन नैय्या को संसार सागर से पार लगाओ।
हो जाओ योगी, बनो निरोगी, हो जाओगे सर्वोपयोगी—अनन्त शुभकामनाऐं