Pt. Jai Prakash Ji “Yagyik” – Convenor
भागवत भूषण पं. जयप्रकाश जी ’याज्ञिक’
’होनहार बिरवान के होत चीकने पात’
बचपन में तुतलाने वाला नन्हा बालक – माता-पिता के साथ, हाथ जोड़कर आरती में भी चंचलता परन्तु ध्यानस्थ होकर साधुता में ही रुचि दिखाना, इस बालक के भावी स्वरूप को परिलक्षित करता था। यही नटखट, चंचल बालक मां सरस्वती का कृपा पात्र भागवताचार्य पं. जयप्रकाश याज्ञिक बन गया।
आपका जन्म २८ नवंबर वर्ष १९५९ में अपनी ननिहाल ग्राम मुण्डीखेड़ी, कस्बा रामपुर मनिहारान जि. सहारनपुर (उ.प्र.) में हुआ। आपके गोलोक वासी पिता परमपूज्य पं. रामकृष्ण शास्त्री एक मूर्धन्य विद्वान थे। आपकी माता स्व. बिमला देवी एक साध्वी देवी, सती स्वरूपा और धार्मिक वृत्ति का साकार स्वरूप थीं। आपके व्यक्तित्व में अपने पिता का पांडित्य तथा स्वभाव एवं वाणी में साध्वी माता का ममत्व स्पष्ट दिखाई पड़ता है। आप अपने छः भाइयों में द्वितीय होते हुए भी अद्वितीय हैं।
पंडित जी का पारिवारिक वातावरण त्रेता में राममय और द्वापर में कृष्णमय बना हुआ है। आपके ज्येष्ठ भ्राता श्री सत्यप्रकाश शर्मा जी सन्त हृदय हैं जो आपके लिये त्रेता में राम और द्वापर में बलराम तुल्य हैं। वे दिल्ली सरकार में उच्च स्थान प्राप्त अधिकारी के रूप में सेवानिवृत्त होने के बाद भी शिक्षा, साहित्य और समाज सेवा के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाये हुए हैं! आपके छोटे भाई श्री अश्वनी कुमार, बृजेश, मुकेश तथा दिनेश कुमार विभिन्न क्षेत्रों में भारतमाता की सेवा में रत हैं और आपके परिवार के आध्यात्मिक वातावरण के श्रेष्ठ अंग बने हुए हैं। धन्य हैं आपके पूर्वज और माता-पिता।
पंडित जी बचपन से ही शिक्षा संघर्ष में जुटे रहे। आपने श्री संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी से संस्कृत, साहित्य, व्याकरण, ज्योतिष तथा न्याय आदि की शिक्षा पाई। तत्पश्चात् आयुर्वेद की शिक्षा पाकर दिल्ली में स्थित एक प्रसिद्ध चिकित्सालय में एक सफल चिकित्सक के रूप में कार्य किया। परन्तु आपका शरीर और मन दोनों ही साधुता के प्रतीक हैं अतः आपका कार्यक्षेत्र तो था ही कर्मक्षेत्र, भगवत्भजन तथा मानव सेवा करने हेतु ही भगवान् श्रीकृष्ण ने (जो स्वयं ननिहाल में प्रकट हुए थे) ननिहाल में जन्में पं. जयप्रकाश याज्ञिक को धर्मानुयायी के रूप में चुना।
श्री कृष्ण भगवान की विशेष कृपा के पात्र पं. जय प्रकाश जी को सन्त शिरोमणि महान तपस्वी, विरक्त संत, परमपूज्य श्री पथिक जी महाराज का विशेष सान्निध्य प्राप्त हुआ। सद्गुरुदेव जी का आशीर्वाद प्राप्त कर पंडित जी ने भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं तथा गीतोपदेश श्रीमद् भागवत के माध्यम से जनहित में करना प्रारंभ किया। पंडित जी शास्त्रों, वेदों व उपनिषदों के गूढ़ ज्ञान को इतनी सरल शैली में समझाते हैं कि सभी आबालवृद्ध लाभान्वित होते हैं। सभी का मन कृष्णमय होता है। भगवान की लीलाएं मानों सजीव हो उठती हैं।
शास्त्रों के विद्वान पिता-त्याग तपस्या लगन साधना सच्ची साध्वी माता, साधु-संतों का सान्निध्य, जीवन संघर्ष की तपती साधना सर्वोपरि सदगुरुदेव का आशीर्वाद तथा भगवान की विशेष कृपा प्राप्त पंडित श्री जयप्रकाश जी याज्ञिक वास्तव में पूजनीय हैं। एक सद्गृहस्थ के रूप में अपने सामाजिक दायित्व को बखूबी निभाते हुए पंडित जी अपने परिवार का और समाज का दायित्व निभा कर एक अनुकरणीय विभूति के रूप में हम सबके सम्मुख हैं। आपको शत – शत नमन् !
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