सत्य वचन
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मनुष्य कहाँ हैं शून्य आंखो मे अब स्पंदन कहाँ हैं । अज्ञान , अंधता , अतिशय यहाँ हैं । दुर्लभ हुई चेतन जीवन की आशा ॥ अब अस्तित्व रह गए मनुष्य कहाँ हैं ॥ 1॥ थकती नही हैं ये व्यस्तता चीरायु सिमटी हैं करुणा अपान प्राण वायु मार्तण्ड , मूर्धन्य , सब मनीषी यहाँ हैं अस्तित्व रह गए हैं , मनुष्य कहाँ हैं ॥ 2॥ जीवन की डोर सबने पकड़ी हैं कसके । “सत्य”कशमकश मे पर जीता हैं हँसके । वीरान ,पाषण जंगल,के दृश्य यहाँ हैं । अस्तित्व रह गए हैं मनुष्य कहाँ हैं ॥ 3॥ संकल्पों का सागर यहाँ भरता हैं निशदिन । सुरसा सा मुख यहाँ बढ़ता हैं पल छिन । दशानन सा हर एक मनुष्य यहाँ हैं । अस्तित्व रह गए हैं मनुष्य कहाँ हैं ॥ रस हीन रिश्ते औऱ फीकी हँसी हैं । अपनो मे अपनी ही गांठे फंसी हैं । तेरा या मेरा हैं यही संशय यहाँ हैं ॥ अस्तित्व रह गए अब मनुष्य कहाँ हैं ॥ 4॥ सत्य प्रकाश शर्मा “सत्य... Read More →